लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-8)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
राज की आंख घुंघरूओं के तेज बजने के कारण खुली ।उसने कान लगायें तो पाया बाहर बगीचे में कोई नृत्य कर रहा है । पहाड़ों में बरसातों के मौसम में ठंड बढ़ जाती है राज ने सोचा इतनी ठंड में कौन नाच रहा है ।वह तुरंत ही अपने पलंग से उठा और अपना ओवरकोट डालकर टार्च लेकर मेंन गेट से बाहर आया तो उसने देखा बाहर बगीचे में बरसात के बाद बहुत ही सुन्दर चांदनी छिटकी हुई थी और वह साफ देख पा रहा था उस चांदनी में उस लड़की को जिसने एक नर्तकी के कपड़े पहने हुए थे और वो बेसुध हो कर नाच रही थी ।राज ने टार्च की रौशनी नहीं की उस पर ताकि उसका ध्यान भंग ना हो ।वह धीरे-धीरे उसके करीब चला जा रहा था ।आज वह उस लड़की की सच्चाई को जान लेना चाहता था ।वह और करीब ,और करीब होता जा रहा था उस लड़की के पास । धीरे-धीरे उस लड़की में और राज में एक फर्लांग का फासला रह गया।
राज देख रहा था वह लड़की एक निपुण नृत्यांगना की तरह भाव भंगिमा बना रही थी ।मानना पड़ेगा कोई भी उसका नृत्य देखकर अपने होश खो बैठता ।तभी वह गोल घूमकर पलटी तो राज ने उसका हाथ पकड़ लिया ।उसने जब राज की ओर देखा तो एकदम बोली,"तुम आ गये देव,देखो आज तुम्हारी पसंद के वस्त्र धारण किये है ।मेरी मूरत नहीं बनाओगे आज।"
इतना कहते ही वह राज की बाहों में बेसुध होकर गिर गई। राज घबरा गया कि ये लड़की यहां कैसे आई और इतनी ठंड में भी इसने इतने पतले वस्त्र पहन रखे थे क्या उसे ठंड नहीं लगती? बहुत से प्रश्न उसके दिमाग में चक्करघिन्नी की तरह घुम रहे थे ।वह उसे वहीं छोड़कर घर की ओर दौड़ा ताकि अंकल को दिखा सकें कि ये लड़की कोई आत्मा नहीं है बल्कि एक जीती जागती इंसान हैं।वह दौड़कर भूषण प्रसाद के बेडरूम का दरवाजा जोर जोर से पीटने लगा ,
"अंकल…..अंकल एक बार बाहर तो आइए ।देखिए मैंने उस लड़की को पकड़ लिया है ।वह बाहर बगीचे में बेहोश पड़ी है "
भूषण प्रसाद एकदम बिजली की गति से उठे और बाहर की ओर दौड़े आगे आगे राज और पीछे पीछे भूषण प्रसाद। लेकिन ये क्या?....राज उस लड़की को बेहोशी की हालत में वहां छोड़कर गया था वो वहां पर थी ही नहीं ।ये देखकर भूषण प्रसाद बोले,
"राज बेटा , कहां है वो लड़की जिसे तुमने पकड़ा था । यहां तो कोई लड़की नहीं दिखाई दे रही।"
"नहीं अंकल वो यहां बहुत ही सुंदर नृत्य कर रही थी ।उसके घुंघरू की आवाज से ही मैं उठा था और …..और उसने ये भी कहा,"देव देखो ना मैंने तुम्हारे पसंद के वस्त्र पहने हैं मेरी मूरत नहीं बनाओगे। "
मैं सच कह रहा हूं अंकल वो यही पर खड़ी नृत्य कर रही थी । हां उसे देखकर ये लग रहा था जैसे वो अपने होश में नहीं थी जैसे सपने में चल रही हो।"
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इधर शहर के एक कोने में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हड़कंप मचा हुआ था ।उनकी बीस साल की बेटी परी कहीं चली गयी थी ।रात को अच्छी भली सोई थी सुबह जब सब की आंखें खुली तो पाया वो गायब थी ।पहले भी वो एक दो बार घर से गायब हो चुकी थी ।जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट उसके पिता श्यामलाल पुलिस में करवा आये थे । पुलिस वालों ने उसकी डिटेल सहित फोटो अखबार में दे रखी थी ।पर उसका कहीं कोई पता नहीं चला लेकिन थोड़े दिन बाद वो अपने आप ही घर लौट आई । मां बापू ने बहुत ही कोशिश की पूछने की कि वो कहां थी तो बस वो यहीं बोलती ,"मैं तो सो रही थी पता नहीं मुझे क्या हो जाता है ।जब मैं जगी तो मैंने अपने आप को एक खंडहर में पाया। मैं वहां से दौड़ी चली आई।"
श्याम लाल ने कितने ही वैध ,ओझा से दिखाया पर कोई हल नहीं निकला । पता नहीं कैसी बीमारी थी उसे वह अच्छी भली सोती थी फिर पता नहीं जैसे कोई चीज चुम्बक की तरह उसे खींचती थी और वह अपना होश खो बैठती थी।जब होश आता था तो अपने आप को उसी महल के खंडहर में पाती थी।उस दिन राज जब उस महल के खंडहर में भूषण प्रसाद के साथ गया था तब उसे वो लड़की चट्टान पर बैठी दिखी थी तब उसने गौर से देखा था उसने वहीं नर्तकी वाले वस्त्र पहन रखे थे। लेकिन जब वो महल के मुख्य दरवाजे से बाहर जा रही थी तब वह पहाड़ी गांव की लड़कियों वाले वस्त्र पहने हुए थी।
परी के माता पिता इस बात से बेहद चिंतित थे कि जवान लड़की कल को क्या पता रात बेरात किसी गलत आदमी के साथ लग गई तो ……।पर वो बेचारे करें भी तो क्या ।पहले कभी भी परी के साथ ऐसा नहीं होता था । हां बस उसे एक सपना बार बार आता था ।जैसे कोई उसके पीछे भाग रहा है उसने कपड़े से मुंह ढक रखा है जिससे ये पता नहीं चलता कि वो आदमी है या औरत और वह निस्सहाय दौड़ी चली जा रही है।
श्यामलाल अभी कुछ दिनों पहले इस गांव में आकर बसे थे । दरअसल ये मकान उनके ससुर का था जिसे उनके रिश्तेदार हड़पना चाहते थे ।ये मकान उनकी पत्नी के नाम था इसलिए वो पास का गांव छोड़ इस गांव में आ बसे थे।
श्याम लाल को याद है ये सपने में चलने वाली बात पूरी के साथ कुछ समय पहले ही घटित होने लगी थी ।एक दिन परी और उसकी मां "लाल हवेली" के पास वाले जंगल से लकड़ियां काट रहे थे ।परी लकड़ियां बीनते बीनते उस हवेली के पास चली गई और जोर से बोली,"ये मेरी हवेली है ,मेरी ,चंद्रिका की ।"यह कहकर वह बेहोश हो गई।उसकी मां ने बताया था कि जब ये ऐसे बोल रही थी तो बड़ी ही अलग ही लग रही थी ।
उस दिन के बाद से ये सिलसिला शुरू हो गया ।
आज तीसरी बार थी जब परी घर से गायब हुई थी ।उसके पिता ने सोचा हो सकता है कहीं महल के खंडहरों में ना हों।ये सोचकर वो उधर की ओर दौड़े ।जब वे वहां पहुंचे तो जो दृश्य देखा उसे देखकर दंग रह गये।
कहानी अभी जारी है……….
Mohammed urooj khan
18-Oct-2023 10:50 AM
👌👌👌👌
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KALPANA SINHA
12-Aug-2023 07:14 AM
Nice part
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